हिंदी में आलोचना की परंपरा को नई दिशा देने वाले साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर प्रोफेसर बच्चनसिंह का शनिवार को दोपहर हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे।
प्रोफेसर सिंह साँस की तकलीफ के चलते दो दिनों पूर्व अस्पताल में भर्ती हुए थे और शनिवार दोपहर दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
शिमला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बच्चनसिंह हिंदी के मूर्धन्य समालोचक थे। उनका हिंदी साहित्य की हर विधा में महत्वपूर्ण योगदान था।
वर्ष 2007 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सिंह का जन्म दो जुलाई 1919 को जौनपुर में हुआ था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने वाराणसी में एनी बेसेंट द्वारा स्थापित ऐतिहासिक सेंट्रल हिंदू स्कूल में शिक्षक के रूप में अपना करियर आरंभ किया।
उन्होंने महाकवि निराला पर अपनी पहली पुस्तक लिखी, जबकि अलोचना की नई शैली विकसित करते हुए उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक 'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास' लिखी।
2 comments:
so sad...
प्रोफेसर बच्चन सिह हिन्दी साहित्य के प्रखर आलोचक माने जाते थे उन्होंने हिन्दी साहित्य को आलोचना के माध्यम से नई दिशा और नई उर्जा प्रदान की है . उनके निधन पर विनम्र श्रध्धानांजलि अर्पित करता हूँ .
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