Saturday, March 22, 2008

जिधर देखू तेरी तस्वीर नजर आती है !

यह बात तब की है जब मैंने अपना कदम जवानी देहलीज पर रखा ही था। उस समय मैं १२वी में पढता था, कुछ भी नहीं पता था कि क्या सही है, क्या ग़लत है, क्या करना है, बस एक सूत्री काम दोस्तो के साथ "मौजा ही मौजा"।

वैसे तो होली मेरे लिए हमेशा ही खास होती है लेकिन उस साल की होली तो मुझे आज तक याद है, हम पांच दोस्त होली की मस्ती मे थे एक दुसरे की टांग खीचते हुए सिविल लाइन्स से चौक की तरफ़ बढे चले। करीब आधे घंटे में चौक पहुचे। वहाँ चौराहे पे करीब २०० से ३०० लड़के अपनी मस्ती नाच गा रहे थे। हम भी उन्ही में शामिल हो गए।

तभी मेरी नजर एक मकान की खिड़की पर पड़ी, उस पर एक लड़की खड़ी थी, मैंने पहले तो टालने की कोशिश की लेकिन नजर थी की कुछ समय बाद वही चली ही जाती। उसकी आखों में अजीब से कशिश थी। मैंने अपने दोस्तो को भी दिखाया लेकिन वह तो होली की मस्ती में चूर थे। लेकिन मैं तो उसे देखता ही रहा। थोडी देर में हम लोग भी अपने अपने घरो के लिए चल दिए। लेकिन मैं घर कब, कैसे और कितनी देर में पंहुचा पता ही नहीं चला।

घर पहुँच के मैं नहा के सो गया लेकिन वह मेरे आखों के सामने घूम रही थी। मैंने सोचा एक दो दिन में यह खुमारी चली जायगी लेकिन मैं जिधर जाता सिर्फ़ वह ही वह नजर आती थी। न ही खेलने में मन लगता न ही किसी और काम में। इस बात को करीब 15 साल हो गए है। सिलसिला आज शायद कम हो गया है लेकिन आज भी वह मुझे नहीं भूलती।

9 comments:

Kapila Chaplot said...

lekh bahut aacha hai aur sath mai rakhi tasveer bhi, javani ka josh bahut khoobsurati se darshaya hai.
Good Work

Sanjeet Tripathi said...

बात आगे बढ़ी थी या नही हजूर!!
होली की शुभकामनाएं

सुभाष नीरव said...

जवानी में ऐसा होता है भाई। यह कहानी आपकी ही नहीं है, पता लगाने चलोगे तो हर दूसरे की जवानी की दास्तान बहुत कुछ ऐसी ही मिलेगी। तुम पान की दुकान लगाकर अपनी दास्तान सुना/पढ़ा रहे हो, बहुत से तो लेखक - कवि बन जाते हैं और अपनी कहानियों- कविताओं में इसे बयान करते रह्ते हैं। हाँ, पोस्ट के साथ दिया चित्र बहुत खूबसूरत है। अगर मैं इसे 'सेव' कर लूँ और भविष्य में अपने किसी ब्लाग में इसका इस्तेमाल करूँ तो भाई तुम्हें कोई आपत्ति तो न होगी?

विनीत खरे said...

सुभाष जी,
आपका बहुत शुक्रिया की आपको यह लेख पसंद आया.

akumarjain said...

विनीत भाई,
बहुत देर कर दी आपने तो। 12वी क्या, हमारा दिल तो 3सरी क्लास में ही किसी पर आ गया था। उस समय शायद शादी का मतलब भी नही पता था, लेकिन एक दिन खिड़्की से मॉ को उसे दिखाया और कहा कि मुझे इससे शादी करनी है। यह बात अलग है कि 10वी तक एक ही क्लास मे पढते हुये भी उससे कभी कुछ कह नही पाया। अब तो बस धुंधली सी उसकी तस्वीर दिल में कहीं रखी है।

Udan Tashtari said...

हो जाता है ऐसा भी..

आपको होली बहुत-बहुत मुबारक.

सुभाष नीरव said...

विनीत जी, आपने मेरी अपनी दो पंक्तियों का नहीं दिया। आपने मेरे ब्लाग्स "सेतु साहित्य", "वाटिका", "साहित्य सृजन" और "गवाक्ष"( लिंक्स - www.setusahitya.blogspot.com www.vaatika.blogspot.com
www.sahityasrijan.blogspot.com
www.gavaksh.blogspot.com) देखें होंगे। मुझे रचनाओं के साथ अच्छे चित्रों की दरकार रहती ह। आप अनुमति नहीं देंगे तो मैं इस चित्र का उपयोग नहीं करुँगा।

डॉ .अनुराग said...

vo kahte hai na neeraj ji ki har umr ke ek alag aasman hota hai....aapne sach likha isliye achha laga.

VINOD RAO said...

BAHUT ACHHI BAAT KAHA AAP NE MUJHE ACHHA LAGA KUCHH AISI HI KAHANI MERE SATH BHI HUA THA 10 SAAL PAHLE LEKIN BAAT AAGE BADI HI NAHI....
THANKS AAP KA HOLI AISE HI JAAYE
## VINOD RAO ##