Monday, December 1, 2008
Saturday, October 25, 2008
दीपावली की शुभकामनाएँ
उजालों की चाह में उड़ कर सूर्य सेMonday, September 22, 2008
जनहित में जारी ....
सफल नौकरी करने के कुछ तरीके...Friday, September 12, 2008
काँच की बरनी और दो कप चाय
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची...
Thursday, August 28, 2008
पापा आई लव यू !
जीवन के कुछ पल होते है जिसे आप जिन्दगी भर नहीं भुला सकते। ऐसा ही एक पल मेरी जिंदगी मैं आज आया। आज मैं और कुछ ऑफिस के दोस्त लंच कर रहे थे। मेरे मित्र संजय जी के सच्चाई से करीब एक घटना सुनाई।एक व्यक्ति ने नई कार खरीदी। एक दिन वो अपनी चार वर्ष की बेटी के साथ घुमने के लिए निकला। निकलते समय उसने अपनी कार पे कपड़ा से सफाई करने लगा। उसकी बेटी ने खेलते-खेलते एक पत्थर से उसने कार पे कुछ लिख दिया, उस पर आदमी को गुस्सा आ गया। उसने पास में पड़े डंडे से उसके हाथो पर डंडे मारे, जिससे उसकी हाथो की उंगलियों में काफी चोट पहुची।
उसको अस्पताल ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने कहा केस बहुत गंभीर है, उंगलियों बहुत नुकसान पंहुचा है। काफी इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर ने कहा की बच्ची की उंगलियों काटनी पड़ेगी।
एक दिन बाद, उस ओपरेशन में उस बच्ची की उंगलियों काट दी गई। ओपरेशन के एक घंटे बाद जब बच्ची को होश आया तो उसने अपने पापा से पूछा, पापा मेरी उंगलियों कब वापस आएगी। अपनी गलती पर सर झुकाते हुए अपने किए पर पछता रहा और बार-बार पूछने पर उस व्यक्ति ने अपनी बेटी को सच्चाई बताई की वो अब कभी नहीं आएगी।
इस पर बेटी ने बहुत ही मासूमियत से बताया की उस दिन आपकी नई कार पर मैंने पत्थर से लिखा था "पापा आई लव यू!".
Wednesday, August 27, 2008
खुशियों और आंसुओं का बाजार
जेड गुडी को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है। कुछ महीने पहले ऐसी ही चर्चा निहिता विश्वास व चार्ल्स शोभराज को लेकर थी। मार्किटिंग के इस जमाने में तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती। कई बार छोटी-छोटी बातों को भी इतनी अहमियत दे दी जाती है कि पूरी दुनिया में उन्हीं की चर्चा होती रहती है। जाहिर है, आज बाजार में केवल सामान ही नहीं, इमोशंस भी बिकते हैंहार्वर्ड बिजनेस स्कूल में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोई तरकीब नहीं सिखाई जाती और न ही मार्किटिंग के लॉन्ग डिस्टन्स कोसेर्ज में इसकी शिक्षा दी जाती है। ये छोटी-छोटी बातें समाज के बीच से ही निकलती हैं और देखते ही देखते दुनिया में छा जाती हैं। मॉडर्न मार्किटिंग में लोगों को अपने प्रॉडक्ट या ब्रैंड की ओर खींचने के रूल्स बदल गए हैं। आज के उपभोक्तावादी युग में दुनिया एक बाजार में तब्दील हो गई है, जहां हर कोई अपने-अपने ढंग से अपनी मार्किटिंग करने की कोशिश करता है। अब दुनिया में केवल सामान ही नहीं, भावनाएं भी बिकती हैं।
साभार: इकनोमिक टाईम्स
Monday, June 16, 2008
"भारतीय" सुधर गए या गूगल ?

June 9, 2008 1:06 PM
ab inconvenienti said... वाह भाई, मेहनत करें हम भारतीय, और क्रेडिट दो तुम गूगल को! आप गूगल के बारे में इतना सब जानते हैं तोफ़िर यह भी मालूम ही होगा की ऑटोसजेस्ट एक स्वचालित प्रक्रिया है, इसमें प्रदर्शित शब्द हिन्दी में अब तक के सबसे अधिक खोजे गए शब्द हैं........... अब अगर ठरकी हिन्दी वाले यही सब सर्च करते हैं तो बेचारा गूगल क्या करे? गूगल 43 भाषाओं में सर्च की सुविधा देता है, पर वह चूँकि हिंदुस्तान की अति पावन संस्कृति षडयंत्र के तहत विनष्ट करना चाहता है, इसीलिए हिन्दी ऑटो सजेस्ट में ऐ से जेड तक हर अक्षर में अश्लील शब्द जानबूझकर घुसा दिए गए , हम उसका मरते दम तक विरोध करेंगे! (और 'एस' क्या सभी अक्षरों में ऐसे ही शब्द ऑटो सजेस्ट हो रहे हैं, ज़रा ये भी पता लगा लें की हिन्दी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग (और शायद सबसे लोकप्रिय साईट भी) मस्तराम मुसाफिर ब्लॉग पर रोज़ कितने हिट्स/कमेंट्स आते हैं)
June 9, 2008 2:28 PM
संजय बेंगाणी said... इस महान संस्कृति की पैदाइश, हम भारतीय अगर सेक्स को खोजते रहेंगे तो यही दिखेगा न... गूगल इसमें क्या करे? और हम भारतीयों की संस्कृति सेक्स शब्द से ही खत्म हो जाती है, पता नहीं तीस से एक सौ बीस करोड़ कैसे हो गए?
June 9, 2008 6:34 PM
June 9, 2008 8:12 PM
akumarjain said... विनीत भाई,अपना भारत तो कृष्ण जी की रासलीला और खजुराहो की शिल्पकला और वात्सायन बाबा की चौसठ कलाओं का देश है, फिर गुगल दादा से क्या होना जाना है??
भाई, जब स्कूलों मे यौन शिक्षा की बात हो रही हो तो मेरे ख्याल से आपको भी बिना देर किये अपने पट इन बातों के लिये खोल देने चाहियें।
June 9, 2008 11:02 PM
विनीत खरे said... मित्रो गूगल भारत इतना समझदार है कि "S" लिखते ही वह समझ गया कि user "सेक्स" समबन्धित शब्द ही ढूंढ़ रहा है ....वाह
June 9, 2008 11:44 PM
विनीत खरे said... अगर हम हिन्दी भाषी यही तलाशते है तो google.co.in के इग्लिश वर्ज़न में ऑटो सजेस्ट मैं "S" लिखने पर ऑटो सजेस्ट क्यों नहीं आता है? क्या यह हिन्दी भाषियों को बदनाम करने की शजिश तो नहीं ?
June 10, 2008 5:57 PM
आलोक said... विनीत जी, आपका लेख और उस पर की टिप्पणियाँ पढ़ीं। लंबा जवाब था इसलिए अपने चिट्ठे पर लिखा है। अपनी प्रतिक्रिया दीजिएगा।
June 10, 2008 11:55 PM
akumarjain said... आलोक जी,
आपका चिट्ठा छान मारा लेकिन गूगल वाली पोस्ट नही दिखाई दी। अगर आप अपने चिट्ठे के बदले पोस्ट का लिंक दे देते तो जरा सुविधा होती।
June 11, 2008 12:06 AM
आलोक said... आपको हुई असुविधा के लिए क्षमा, यह है लेख की कड़ी -
गूगल सुझाव, टेक्नोलॉजी, अश्लीलता, और प्रयोक्ता का अनुभव - सुधारना आपके हाथ में है
June 12, 2008 6:24 PM
akumarjain said... आलोक जी, कडी के लिये धन्यवाद। आपके आलेख पर मैने एक छोटी सी छीटाकशी की है, उसका अवलोकन जरूर करें। मुझे लगता है कि हिंदी ब्लागिंग तथा मीडिया से जुडे बंधुओ को इसके लिये गुगल से विरोध जताना चाहिये। विरोध सामुहिक भी हो सकता है और व्यक्तिगत भी।
June 13, 2008 9:54 AM
Saturday, June 14, 2008
याहू गूगल भाई-भाई
इंटरनेट की दुनिया में अपनी धाक जमाने वाली दो बड़ी कंपनियों गुगल और याहू ने आपस में समझौता कर लिया है जिसके तहत याहू अब गुगल की विज्ञापन की तकनीक का सहारा ले सकेगी ।और इसके साथ ही अब याहू सर्च इंजन के साथ गुगल के विज्ञापन भी दिखाए जाएगें । लेकिन यह समझौता के वल अमेरिका और कनाडा में ही मान्य होगा।
दोनों ही कंपनिया इंटरनेट के बाजार पर तकड़ी पकड़ रखती है और उनकें युजर की संख्या भी जबदरस्त है । ऐसे में याहू का यह कहना कि इस समझौते के तहत एसे कम से कम ३२ अरब रुपए का फायदा होनें की संभावना कोई बहुत बड़ी अतिश्योक्ति पूर्ण बात नहीं है ।
दस समझौते के माध्यम से याहू अपने अपभोक्ता को अपने सर्च इंजन के माध्यम से गुगल के विज्ञापन दिखा सकेगा ।
इस समझौते के माध्यम से न केवल दोनों बड़ी कंपनियों को आय के मामले में बड़ा फायदा होगा बल्कि बेहतर टेक्नोलॉजी के माध्यम से विज्ञापन दाता और उपभोक्ता दोनों का फायदा होना भी तय माना जा रहा है । कम से कम अगले चार साल तो इस मामले में इंटरनेट की दुनिया में बड़ी खोजे और बेहतर बाजार के मामले में दोनों कंपनियों को इस संयोजन से बड़ा फायदा मिलेने जा रहा है ।
Monday, June 9, 2008
गुगल करें तो टेक्नोलॉजी और करें अश्लीलता

गुगल ने एक टेक्नोलॉजी प्रयोग करके user के लिए ऑटो सजेस्ट की टेक्नोलॉजी तैयार की है जिससे user एक वर्ड को लिखते ही आपको उस वर्ड से संबंधित शब्द आ जायगे।
मित्रो गुगल के लोगो (Google's Logo) के नीचे भारत लिखा है, भारत की संस्कृति पर हमला नहीं है ? क्या भारत में इतना खुलापन है की "s" लिखते ही सेक्स के शब्द ऑटो सजेस्ट हो ?
Monday, May 19, 2008
रफ़्तार का नया अवतार !
"रफ़्तार" पहले हिन्दी सर्च इंजन के रूप में अपना प्रचार-प्रसार करता था, लेकिन रफ़्तार अब नए रूप में आपके सामने हाज़िर है। इसको देखते है तो "सर्च इंजन" कम " हिन्दी पोर्टल" दिखता है मुझे यह बेहतर दिखता है, इसका हिन्दी टाइपिंग टूल और भी बेहतर है यूजर के रूचि को देखते हुए "रफ़्तार" ने कई सेक्शन में इसको बांटा है। जिसमे खबरे, कारोबार, चटपटी, साहित्य, ब्लॉग, लाइफ स्टाइल, सॉग सर्च, सेंसेक्स अपडेट और भी बहुत कुछ है ...देख के यह लगता है की "रफ़्तार" सर्च से हट के पोर्टल बनने जा रहा है लेकिन किसी के लुक को देख कर उसकी पहचान करना ग़लत है यह बात साबित होती है। क्यूंकि जो भी न्यूज़ को है वह सर्च करता है, और रिजल्ट भी वह सारे न्यूज़ वेबसाइट से देता है.
Monday, April 28, 2008
नेट पर सार्थक सर्च
इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि आपकी चाही गई सूचनाओं को समझने के लिए कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के पास अपना कोई दिमाग नहीं है जो आपकी तरह सोचे। वे केवल आपके समझ की तार्किक परिणिति मात्र कर सकते हैं। यहाँ प्रभावी तथा सार्थक सर्च के 10 सूत्र दिए जा रहे हैं, जो आपको अच्छी सर्च करने में जरूर ही मदद करेंगे।
1. सर्च एक कला है : सबसे पहले तो आपको यह मानना होगा कि किसी सर्च इंजन में मात्र कुछ शब्द टाइप करना सर्च नहीं है। सर्च करना तार्किक तथा कलात्मक अभिव्यक्ति है।
2. सर्च इंजन की कार्यप्रणाली की समझ : यदि किसी भी सर्च के प्रति आप गंभीर हैं तो आपको सर्चइंजन चुनने से पहले यह भी समझना होगा कि आपका चुना हुआ सर्चइंजन किस तरह सर्च करता है।
3. पंसदीदा सर्चइंजन को चुनें पर एक पर सीमित न रहें : आज नेट पर सर्चइंजनों की बाढ़ सी आ गई है। प्रत्येक वेब साइट अपने सर्चइंजन की तारीफ करती नजर आती है। इनमें से बहुत सारी वेबसाइटों ने तो कुछ प्रसिद्ध सर्चइंजिनों की मात्र लिंक भर दे रखी है।
आपके चुने हुए सर्चइंजन को विस्तृत डाटाबेस वाला होना चाहिए। उसके डाटाबेस पर निरन्तर कार्य हो रहा हो। तकनीकी रूप से रोज नए फीचर जोड़े जा रहे हों।
एक सर्च इंजन पर अधिकतम सर्च करने से एक तो आप उस सर्च इंजन की कार्य प्रणाली से परिचित हो जाएँगे तथा दूसरा आपको एक ही तकनीकी प्लेटफॉर्म पर सर्च का अभ्यास भी बढ़ेगा।
4. की-वर्ड सावधानी से चुनें और उन्हें अदल-बदल कर आजमाएँ : आपके और कम्प्यूटर के बीच संवाद का सहारा की- वर्ड मात्र ही हैं। यही एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए आप सर्चइंजन तक अपनी बात पहुँचा सकते हैं। जितना सही की-वर्ड होगा उतने ही बढ़िया परिणाम होंगे।
आपकी सर्च की सार्थकता तथा सर्च करने का तरीका बहुत कुछ की-वर्ड के चुनाव पर निर्भर करता है। 'इलेक्शन' और 'अमेरिकन इलेक्शन' दो की वर्ड हैं जिनके चुनने पर आपके सर्च परिणामों में बहुत अंतर हो सकता है।
5. एडवांस्ड सर्च का उपयोग करें : मोटे तौर पर इसे सर्च परिणामों में से सर्च करना कहा जा सकता है। अक्सर सर्चइंजनों द्वारा आपकी खोज के परिणाम हजारों-लाखों की संख्या में दिए जाते हैं। उन सभी वेबपेजों को देखना व्यावहारिक नहीं है।
ऐसी स्थिति में आप परिणामों को परिष्कृत करने के लिए कुछ गणितीय अंकों तथा कोष्ठकों का सहारा लेते हैं। अनावश्यक परिणामों से निपटने के लिए 'एडवांस्ड सर्च ' एक अच्छा रास्ता है। इसी तरह ई ऑपरेटर के जरिए आप उन वेबपेजों को देख सकते हैं जिनमें दोनों की-वर्ड शामिल हों।
अलग-अलग सर्च इंजन अलग-अलग तरीके से ऑपरेटर्स स्वीकार करते हैं, इसलिए आप अपने पंसदीदा सर्चइंजन के ऑपरेटर्स के बारे में पढ़ लें तो ज्यादा अच्छा होगा।
6. सीधे वेबसाइट सर्च करें : अगर आप चांस लेना ज्यादा पंसद करते हों तो गुगल सर्च इंजन के 'आय एम फीलिंग लकी' ऑप्शन को जरूर आजमाएँ। किसी उचित की-वर्ड को गुगल सर्च के एडरेस बार में टाइप करें। फिर नीचे दिए गए ऑप्शन 'आय एम फीलिंग लकी' में क्लिक करें।
आप थोड़ी देर बाद अपने ब्राउजर पर एक वेबसाइट खुली पाएँगे। अधिकांश मामलों में आपकी चाही गई जानकारी के सार्थक परिणाम इस वेबसाइट में मिल जाते हैं।
7. फोटो सर्च अलग से करें : कभी-कभी हम सूचनाओं के रूप में केवल फोटो चाहते हैं। कुछ सर्चइंजन ऐसे हैं जो फोटो सर्च की सुविधा अलग से उपलब्ध कराते हैं।
8. कम प्रसिद्ध सर्च इंजनों को भी उपयोग करें : कभी-कभी अच्छे-अच्छे सर्चइंजनों द्वारा भी वह जानकारी नहीं मिलती जो गैर परम्परागत सर्चइंजनों में एक बार क्लिक करने पर मिल जाती है।
9. सर्च विद इंटेलीजेंस : मित्रों से पूछें : यह विकल्प बुरा नहीं है। खासकर यदि आपको कुछ ऐसे लोगों के बीच कार्यकरने का मौका है जो नेट प्रेमी हैं तथा सूचनाएँ शेयर करने में रुचि लेते हैं, उनसे कोई जानकारी लेना एक अच्छा विकल्प है।
हो सकता है कि वे आपकी घंटों की मेहनत को मिनटों तक सीमित कर दें। यह कहना शायद गलत न हो कि अभी तक इंटेलीजेंट सर्चिंग में यह एक मात्र मौजूद विकल्प है जहाँ निर्णय लेने की क्षमता मौजूद रहती है।
10. सर्च परिणामों को सावधानी से देंखे : अक्सर होता यह है कि सर्च करने वाला सर्च परिणामों की संख्या देखते ही घबरा जाता है। आपको शुरू के कुछ पेजों तक तो जाना ही चाहिए।
आभार: एम एस एन
Tuesday, April 15, 2008
दो रूमाल और 50,000 रूपये (हास्य)
आखिर एक दिन बुढ़िया बहुत बीमार हो गई और उसके बचने की आशा न रही। उसके पति को तभी खयाल आया कि उस डिब्बे का रहस्य जाना जाये। बुढ़िया बताने को राजी हो गई। पति ने जब उस डिब्बे को खोला तो उसमें हाथ से बुने हुये दो रूमाल और 50,000 रूपये निकले। उसने पत्नी से पूछा, यह सब क्या है। पत्नी ने बताया कि जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी मां ने उससे कहा था कि ससुराल में कभी किसी से झगड़ना नहीं । यदि कभी किसी पर क्रोध आये तो अपने हाथ से एक रूमाल बुनना और इस डिब्बे में रखना।
बूढ़े की आंखों में यह सोचकर खुशी के मारे आंसू आ गये कि उसकी पत्नी को साठ वर्षों के लम्बे वैवाहिक जीवन के दौरान सिर्फ दो बार ही क्रोध आया था । उसे अपनी पत्नी पर सचमुच गर्व हुआ।
खुद को संभाल कर उसने रूपयों के बारे में पूछा । इतनी बड़ी रकम तो उसने अपनी पत्नी को कभी दी ही नहीं थी, फिर ये कहां से आये?
''रूपये! वे तो मैंने रूमाल बेच बेच कर इकठ्ठे किये हैं ।'' पत्नी ने मासूमियत से जवाब दिया।
Friday, April 11, 2008
17 बातें जो ऑफिस में आएं काम
1. सहकर्मियों से हाथ मिलाने, उन्हें शुभकामना देने, किसी नए व्यक्ति के आने पर उसका परिचय अन्य लोगों से कराने और उसे कार्य संबंधी जरूरी बातें बताने जैसी बातें शिष्टाचार के तहत आती हैं।
2. फोन करते समय जोर से बोलना, च्यूइंगम या कोई खाद्य पदार्थ मुंह में डालकर बात करना, अभद्र या असम्मानजनक भाषा का प्रयोग करना, सेल फोन का वॉल्यूम बढाए रखना, तेज आवाज में म्यूजिक सुनना बुरे व्यवहार के तहत आता है। ऑफिस में दूसरों की सुविधा के लिए इन बातों का ध्यान रखें।
3. यदि वरिष्ठ पद पर या बॉस की भूमिका में हों तो सेक्रेटरी, कनिष्ठ या सहकर्मियों के साथ सम्मानजनक ढंग से बात करना न भूलें।
4. यदि आप किसी ऐसे संस्थान में हैं, जहां रोज कस्टमर या क्लाइंट से मिलना-जुलना पडता हो तो जरूरी है कि विपरीत स्थिति में भी सहज और स्वाभाविक सकारात्मक मुसकान के साथ बातचीत करें।
5. यदि किसी महत्वपूर्ण विषय पर बैठक होने जा रही है तो सभी को उसकी तैयारी के लिए पर्याप्त समय दें। उन्हें शेडयूल और बैठक का विषय अवश्य बताएं, ताकि वे मानसिक तौर पर तैयार होकर आएं।
6. मिनट्स का विभाजन, बैठक का सार और हर भागीदार को धन्यवाद ज्ञापन जैसी छोटी-छोटी बातों को न भूलें।
7. कभी किसी को ज्यादा देर के लिए प्रतीक्षारत न रखें। यदि आप आवश्यक विचार-विमर्श में व्यस्त हैं और किसी का अपॉइंटमेंट निर्धारित है तो उसे अवश्य इसकी सूचना दे दें। अपरिहार्य कारणोंवश ऐसा संभव न हो सके तो मिलने पर अवश्य उदारतापूर्वक उसे प्रतीक्षा के लिए धन्यवाद दें और अपनी विवशता बताएं।
8. ऑफिस में आपके परिधान भी शिष्टाचार को दर्शाते हैं। कार्य के अनुरूप ऐसी ड्रेस पहनें, जो शालीन हो न कि भडकाऊ किस्म की। गहरे मेकअप से बचें। वर्किग वूमेन हैं तो जरूरी है कि आपके व्यक्तित्व या बॉडी लैंग्वेज से दूसरों को गलत संदेश न जाए।
9. वरिष्ठ पद पर या बॉस की भूमिका में हैं तो लोगों को जानने दें कि आप उनके किन कार्यो की सराहना करते हैं। प्रशंसा करने में कंजूसी न करें। सराहना के कुछ शब्द किसी को प्रोत्साहित करने और आपके प्रति अच्छा महसूस करने को बढावा देंगे।
10. ऑफिस में जोर से न बोलें। ध्यान रखें कि आपकी बातचीत से दूसरों का ध्यान भंग न हो हो। सहकर्मियों-कनिष्ठों पर कोई ऐसा कमेंट न करें, जिससे वे आहत हों।
11. अपने निजी फोन, ईमेल्स का इस्तेमाल अवश्य करें, लेकिन उतना ही, जितना आवश्यक हो। हमेशा निजी फोन पर व्यस्त रहना न सिर्फ शिष्टाचार के नियमों के खिलाफ है बल्कि इससे कार्यक्षमता भी घटती है।
12. दफ्तर में अनावश्यक गपशप को कभी बढावा न दें। बेहतर हो कि खाली समय का सदुपयोग खुद को अपडेट करने के लिए करें। कभी-कभार कार्य की गंभीरता के बीच में हलकी-फुलकी बातचीत में कोई बुराई नहीं है, लेकिन ऐसा न हो कि दफ्तर कार्यस्थल न रहकर चौपाल या फिर पंचायत स्थल का रूप लेने लगे।
13. क्या आप परफ्यूम्स या डियो इस्तेमाल करते हैं? अगर हां, तो ऑफिस में शिष्टाचार का सिद्धांत कहता है कि अपने महंगे खुशबूदार इत्र को सामाजिक आयोजनों के लिए रखें। दफ्तर में तेज गंध वाले कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल करने से यथासंभव बचें। हो सकता है इससे दूसरों को परेशानी या एलर्जी होती हो। साथ ही इससे दूसरों का ध्यान भी बंटता है।
14. बिखरी हुई फाइल्स आपके अव्यवस्थित होने के बारे में बहुत कुछ कह देती हैं। इधर-उधर पडे कागज, खाने-पीने का सामान, चाय के कप या फिर कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें डस्टबिन में फेंकने की आदत डालें। आखिर आप अपने घर में भी स्वच्छता का ध्यान रखते हैं तो फिर कार्यस्थल में ऐसा क्यों नहीं कर पाते!
15. ऑफिस में एक अन्य बात जिस पर ध्यान देना जरूरी है, वह है रेस्ट रूम की सफाई। वॉश रूम का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि आपकी वजह से किसी अन्य को परेशानी न हो। नल खुला छोड देने, कचरा डस्टबिन में न डालने और पानी फैलाने की आदतों से बाज आएं।
१६. यदि दफ्तर में आपको किचेन की सुविधा प्राप्त है तो स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। फ्रिज से खाना निकालते हुए, अवन में खाना गर्म करते हुए या गैस पर चाय बनाते हुए इस बात का खयाल रखें कि यह कई लोगों के इस्तेमाल के लिए है।
17. दूसरों के फैक्स, ईमेल्स, कम्यूटर स्क्रीन या मेल्स बगैर उनकी इजाजत के कभी भी न देखें या पढें।
आभार: जागरण
Tuesday, April 8, 2008
Monday, April 7, 2008
२१वि. सदी में हिंगलिश
यहाँ तक की टी वी पर हिन्दी न्यूज़ चैनल पर भी अब हिंगलिश ही सुनाई तथा दिखाई देती है। आजकल "कोर्पोरेट कल्चर" में हम लोगो को पता ही नहीं चलता की हम कब हिंगलिश का प्रयोग कर गए।
महानगर में कुछ प्रचलित हिंगलिश .....
1. good है
2. hello है जी
3. good morning जी
4. ओ जी Thanks
5. rent पे लेना है
6. Sunday के दिन
हम लोग जाने-अनजाने में हिन्दी को अंग्रेजी में और अग्रेजी को हिन्दी में मिक्स कर "हिंगलिश" का प्रयोग करते है। तो भाइयो प्रश्न यह उठता है कि आज के दौर में किस प्रसिद्ध भाषा का उपयोग किया जाए, हिन्दी, अंग्रेजी या हमारी और आपकी "हिंगलिश" ?
Sunday, April 6, 2008
माइक्रोसाफ्ट की दादागिरी !
माइक्रोसाफ्ट कारपोरेशन ने याहू को धमकी दी है कि अगर वह तीन सप्ताह के भीतर उसके प्रस्तावित सौदे को नहीं मानता है तो वह उसका जबरन अधिग्रहण कर लेगा। माइक्रोसाफ्ट के मुख्य कार्यकारी स्टीवन ए।बालमर ने शनिवार को याहू को लिखे एक पत्र में कहा कि हमसे बात न करके आप एक बहुत बड़े अवसर को गवां रहे हैं। याहू हमारे साथ सौदे को नकार कर अपने कर्मचारियों और शेयरधारकों को बहुत बड़े लाभ से वंचित कर रहा है।
पत्र के अनुसार, ‘अगर याहू का बोर्ड हमसे तीन सप्ताह के भीतर बात करने में असफल रहता है तो माइक्रोसाफ्ट इस प्रस्ताव को मजबूरन सीधे याहू के शेयरधारकों के पास ले जाएगी और याहू के निदेशक मंडल को बदलने का प्रस्ताव भी रख सकती है।’
जर्नल द वाल स्ट्रीट ने याहू कंपनी के एक नजदीकी के हवाले से बताया कि याहू बोर्ड माइक्रोसाफ्ट के पत्र की समीक्षा कर रहा है।
गौरतलब है कि याहू ने माइक्रोसाफ्ट का प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि उन्हें प्रस्तावित सौदे से अधिक रकम की उम्मीद है।
उल्लेखनीय है कि माइक्रोसाफ्ट इसलिए भी याहू का अधिग्रहण करना चाहता है क्योंकि वह इस क्षेत्र में सर्च इंजिन गूगल से प्रतिस्पर्धा करना चाहता है और याहू इसके लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में उसकी एक पहचान है।
एक और बच्चन का निधन
प्रोफेसर सिंह साँस की तकलीफ के चलते दो दिनों पूर्व अस्पताल में भर्ती हुए थे और शनिवार दोपहर दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
शिमला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बच्चनसिंह हिंदी के मूर्धन्य समालोचक थे। उनका हिंदी साहित्य की हर विधा में महत्वपूर्ण योगदान था।
वर्ष 2007 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सिंह का जन्म दो जुलाई 1919 को जौनपुर में हुआ था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने वाराणसी में एनी बेसेंट द्वारा स्थापित ऐतिहासिक सेंट्रल हिंदू स्कूल में शिक्षक के रूप में अपना करियर आरंभ किया।
उन्होंने महाकवि निराला पर अपनी पहली पुस्तक लिखी, जबकि अलोचना की नई शैली विकसित करते हुए उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक 'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास' लिखी।
Tuesday, April 1, 2008
... तब कहाँ छुपे थे भाई !!!
Comment One...
अब ऐसे मजाक घटिया लगते हैं। जाने-अनजाने आप हिन्दी के विरुद्ध किये जा रहे इस तरह के षडयन्त्रों में सहभागी हो रहे हैं। यदि दम हो तो कभी अंग्रेजी की पारिभाषिक शब्दावली का विश्लेषण कीजिये और समझने की कोशिश कीजिये कि वे कितने सार्थक हैं।
March 31, 2008 11:32 AM
Comment Two...
हास्य अच्छा है, पर आप अपनी हिन्दी थोडी सुधर लीजिये, ,, "थोड़ा हिन्दी जान लो भाई !!!" .. को अगर "थोड़ी हिन्दी जान लो भाई !!!" लिखते तो बेहतर होता..
March 31, 2008 12:56 PM
Comment Three...
एक बेहुदा मजाक, ऐसा शाहरूख व साजिद जैसे लोग करते है.
March 31, 2008 1:40 PM
Comment Four...
कितनी हीन भावना धंसी है आपमें जो अपनी मातृभाषा के साथ ये बेहूदगी आपको हास्य लगती है।
March 31, 2008 3:06 PM
Comment Five ...
Behoodi harkat hai yeh.
April 1, 2008 8:18 AM
लेकिन मुझे यह जानना है कि हिन्दी की यह दुर्दशा हो रही थी तो यह मठाधीश कहा थे। मुझे यह भी जानना है कि उसमें लिखे अग्रेजी के शब्दों का अर्थ अगर उन लोगो को पता है तो मुझे भी बता दे ताकि मैं भी उसको सुधर लू।
Monday, March 31, 2008
गधो में गधा !

Saturday, March 22, 2008
जिधर देखू तेरी तस्वीर नजर आती है !
यह बात तब की है जब मैंने अपना कदम जवानी देहलीज पर रखा ही था। उस समय मैं १२वी में पढता था, कुछ भी नहीं पता था कि क्या सही है, क्या ग़लत है, क्या करना है, बस एक सूत्री काम दोस्तो के साथ "मौजा ही मौजा"।वैसे तो होली मेरे लिए हमेशा ही खास होती है लेकिन उस साल की होली तो मुझे आज तक याद है, हम पांच दोस्त होली की मस्ती मे थे एक दुसरे की टांग खीचते हुए सिविल लाइन्स से चौक की तरफ़ बढे चले। करीब आधे घंटे में चौक पहुचे। वहाँ चौराहे पे करीब २०० से ३०० लड़के अपनी मस्ती नाच गा रहे थे। हम भी उन्ही में शामिल हो गए।
तभी मेरी नजर एक मकान की खिड़की पर पड़ी, उस पर एक लड़की खड़ी थी, मैंने पहले तो टालने की कोशिश की लेकिन नजर थी की कुछ समय बाद वही चली ही जाती। उसकी आखों में अजीब से कशिश थी। मैंने अपने दोस्तो को भी दिखाया लेकिन वह तो होली की मस्ती में चूर थे। लेकिन मैं तो उसे देखता ही रहा। थोडी देर में हम लोग भी अपने अपने घरो के लिए चल दिए। लेकिन मैं घर कब, कैसे और कितनी देर में पंहुचा पता ही नहीं चला।
घर पहुँच के मैं नहा के सो गया लेकिन वह मेरे आखों के सामने घूम रही थी। मैंने सोचा एक दो दिन में यह खुमारी चली जायगी लेकिन मैं जिधर जाता सिर्फ़ वह ही वह नजर आती थी। न ही खेलने में मन लगता न ही किसी और काम में। इस बात को करीब 15 साल हो गए है। सिलसिला आज शायद कम हो गया है लेकिन आज भी वह मुझे नहीं भूलती।
Friday, March 21, 2008
होली मुबारक !
Tuesday, March 18, 2008
मैं सोनिया गाँधी बनना चाहता हूँ
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी का कहना है कि वह सोनिया गांधी बनना चाहते हैं। पाकिस्तान और किसी अन्य जगह की अपेक्षा भारत के लिए अधिक मायने रखती है।आम धारणा है कि मनमोहन सिंह सिर्फ़ रबड़ स्टाम्प की तरह है और सारे फैसले "दस जनपथ" पर यानी सोनिया गांधी ही करती है। बजट हो, परमाणु करार पर लेफ्ट गीदड़ भपकी, काग्रेस में वरिष्ठ पदों पर नियुक्तिय और भी है .... सब ही पर सोनिया की मोहर होना जरुरी है।
जब भी कोई मनमोहन सिंह से उनकी सरकार की पूछता है तो वह यह कहकर मुकर जाते है कि सोनिया जी को बात करे है। सच्चाई यह है कि शासन सोनिया गांधी ही कर रही हैं, मनमोहन सिंह तो मात्र प्रशासन चलाते हैं। जब जरदारी यह कहते है कि वह सोनिया गाँधी बनना चाहता हूँ इसका मतलब यह हुआ कि पद बिना विराजे हुए सत्ता सुख। जरदारी तो पहले ही प्रधानमंत्री पद के प्रति अपनी लालसा जाहिर कर चुके हैं।
Sunday, March 16, 2008
कुछ तो बात है अपने पुराने शहरो में ...
इस महानगर की भागदौड़ में मैं शायद खो गया हूँ। मैंने अपने को खोजने नाकाम कोशिश की कुछ याद आया लेकिन धुंधला सा।
वहाँ के तयौहारों में तो पता चलता त्यौहार है। हफ्तो पहले से ही माँ तैयारी शुरू कर देती थी। वहाँ की होली की बात ही कुछ और। वह् माँ के साथ आलू के पापड़ बनवाते बनवाते चुपके से खाना, गुझिया के बनते समय गरम-गरम चखना, शाम को हास्य कवि सम्मेलन में वह हास्य की फुहार, होली जलने की रात दोस्तो के साथ शहर में घूमना, वह होली के दिन रंगो की बाल्टी, हर तरफ़ अबीर गुलाल .... लेकिन यहाँ तो भाई एक दूसरे को रंग क्या पानी की बूंद नहीं डालता।यहाँ मरने पर चार कंधे नहीं नसीब होते है. यहाँ रहने वाले एक अजीब सी जी रहे है। जिसमे न प्यार, न रिश्ते , न जज्बात, बस जी रहे है। मेरा मानना है कि ९०% लोगो वही के है लेकिन वहाँ के लोग महानगर में आ के महानरकीय जिन्दगी जी रहे है। पता नहीं क्यों जी रहे है।
Wednesday, March 5, 2008
चाचा की 'राज' नीति
राज ठाकरे के उत्तर भारतीय विरोधी बयान को आज बाल ठाकरे ने घी डाल दिया। समय-समय पर हिंदुत्व का नारा बुलंद करने वाले बाल ठाकरे ने बिहारियों के विरोध में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने एक SMS का जिक्र करते हुए कहा ...एक बिहारी , सौ बीमारी ।
दो बिहारी , लड़ाई की तैयारी ।।
तीन बिहारी , ट्रेन हमारी ।
पांच बिहारी , सरकार हमारी ।।
मेरा मानना है, कि मराठी वोट बैंक हाथ से निकलता देखकर बाल ठाकरे तिलमिलाए हुए हैं और इसलिए राज ठाकरे से बढ़-चढ़कर भड़काऊ बातें कह रहे।
हिन्दी साहित्य की दशा और दिशा
भारत के दिल यानी दिल्ली में चाय बेचता हुआ लक्ष्मण राव किसी भी दूसरे चाय वाले की तरह ही नजर आएगा पर वो अब तक कुल 18 किताबें लिख चुके हैं।दिल्ली में आईटीओ के पास चाय की दुकान चलाने वाले 53 वर्षीय लक्ष्मण के पास 'भारतीय साहित्य कला प्रकाशन' नाम का खुद का प्रकाशन भी है। लक्ष्मण ने बताया कि मैं पिछले 28 या 29 सालों से लघु कहानियां, नाटक और उपन्यास लिख रहा हूं। उन्होंने बताया कि अपनी पहली किताब नई दुनिया की नई कहानी में मैंने अपने जीवन के सारे संघर्षो और चुनौतियों का जिक्र किया है। यह किताब मैंने 1979 में लिखी थी।
महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक गरीब किसान परिवार में जन्मे लक्ष्मण को हिंदी साहित्य से विशेष लगाव रहा है। उन्होंने 1973 में मुंबई विश्वविद्यालय से हिंदी माध्यम में 10वीं की शिक्षा पूरी की। उन्हे गुलशन नंदा के उपन्यासों से विशेष लगाव रहा है।
लक्ष्मण ने कहा कि वह जीवन के शुरुआती दौर में लेखक बनना नहीं चाहते थे, पर एक घटना ने उन्हे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। एक छोटा बच्चा, जो नदी में नहाने गया था, डूब कर मर गया और इस घटना ने उन्हे इतना उद्वेलित किया कि अपनी भावनाओं को एक शक्ल देने के लिए उन्होंने किताबों का सहारा लिया। हालांकि घर के कमजोर आर्थिक हालात की वजह से उन्हे अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा के बाद छोड़नी पड़ी। आजीविका के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए स्थानीय मिल और निर्माण स्थलों पर भी काम किया। पर फिर वह 1975 में दिल्ली आ गए।
दिल्ली में दरियागंज इलाके में किताब बाजार को देखकर उनका शौक एक बार फिर जाग उठा। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार के माध्यम से स्नातक की डिग्री ली। अपनी जमा पूंजी से उन्होंने एक चाय की दुकान खोली और तब से वह किताबें लिखने में जुट गए। हालांकि उन्हे किसी प्रकाशक से कोई सहायता नहीं मिली। तब उन्होंने सोचा कि वह अपनी किताबों को खुद ही लिखेंगे, प्रकाशित करेगे और बेचेंगे। लक्ष्मण गर्व से कहते है, मेरी कुछ किताबों को आप सार्वजनिक पुस्तकालयों और स्कूली पुस्तकालयों में देख सकते है।
आभार: जागरण
प्रताप सोमवंशी को केसी कुलिश सम्मान

Monday, March 3, 2008
ब्लॉग पर बढती अश्लीलता
मित्रो,
मुझे यह लगता है की हिन्दी ब्लोगस पर बढ़ते अश्लीलता अब सोचनीय विषय बन चुका है वह भी ब्लॉगर का समूह जहाँ सब ही अपनी बात को दावेदारी से रखते है लेकिन इस दावेदारी मे यह भूल जाते है की वह जिस हिन्दी के शब्दों का प्रयोग कर रहे है वह सर्वमान है की नहीं
बीते दिनों मे जिस तरह ब्लॉगरस ने अपनी लड़ाई लड़ी है, उसमे सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी का नुकसान हुआ है मुझे यह लगता है की ब्लॉगस के दिग्गजों को यह समझना चाहिए की जिन शब्दों का प्रयोग वह करते है उससे आपकी पहचान बनती है और मुझे यह भी लगता है की ब्लॉगर शायद अपनी कुछ सस्ती लोकप्रियता तो हासील करते होगे लेकिन बहुत बड़ा तबका शायद दुबारा उनके उदगार सुनना पसन्द न करे



